Sunday, November 14, 2010

ग़रीब बच्चे

 ग़रीब बच्चे: शिक्षा से वंचित नौनिहाल

सुविधा संपन्न बच्चे तो सब कुछ हासिल कर सकते हैं, लेकिन सरकार उन नौनिहालों के बारे में भी सोचे, जो गंदे नालों के किनारे रहते हैं या फ़ुट्पाथ पर सोते हैं। उन्हें न तो शिक्षा मिलती है और ना ही आवास। 'सर्वशिक्षा' के दावे पर दम भरने वाले भी इन्हें शिक्षा के मुख्यधारा से जोड़ नहीं पाते। पैसा कमाना इन बच्चों क शौक नहीं, बाल्कि मजबूरी है। शिक्षा के अभाव में अपने अधिकारों से अनभिग्य ये बच्चें बंधुआ मजदूर की तरह अपने जीवन को काम में खपा देते हैं और इस तरह देश के नौनिहाल शिक्षा, अधिकार, जागरुकता, व सुविधाओं के अभाव में अशिक्षा और अनभिग्यता के नाम पर अपने सपनों की बलि चढ़ा देता है । यदि हमें चाचा नेहरु के सपने को सच करना है तो सबसे पहले गरीबी और अशिक्षा के गर्त में फ़ंसे बच्चों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना होगा तथा उनके अंधियारे जीवन में शिक्षा का प्रकाश फ़ैलाना होगा।
        

 ग़रीब बच्चे: कम कड़वा नहीं है सच
मुल्क में एक अलग किस्म के बच्चे भी हैं. बच्चे तो बच्चे हैं| कोई भेद उनमें नहीं होता, इसालिये उन मजबूरो की बात करनी भी जरुरी है जिनको इसका पता भी नहीं चल पाता कि बचपन  वाकयी होता क्या है।इस भाव से उनकी मुलाकात  शायद ही कभी होती हो ।अलसुबह जब सभ्य समाज़ के बच्चे गर्म रजाइयो मे सुंदर नींद का आनंद लेते है तो वे बच्चे सड़को पर कचड़ा बीनते हैं, या रेलवे के प्लेटाफ़ोर्मो पर खाना ढूँढ़ रहे होते हैं।

ऐसे बच्चे जिनका घर नहीं होता या होता भी है, तो महज समझौता होता है, अगर उनके माँ-बाप उन्हें ऐसे कामों पर नहीं  भेजेंगे, तो परिवार नहीं चल सकेगा। यही उनका  बचपन हैं। भारी बोझ है उनके कमज़ोर कांधों पर। फिर भी हिम्मत तो देखो कि वे बेफ़िक्र जीते  हैं और लड़ते हुए जिंदगी को आईना दिखाते है कि हमारे जज्बे के आगे चुनौतियां क्या हैं।


देश में पाँच करोड़ बाल श्रमिक

बालश्रम की बात करें तो अधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक देश में फिलहाल लगभग  पाँच करोड़ बाल श्रमिक हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी भारत में सर्वाधिक बालश्रमिक होने पर चिंता व्यक्त की है। ऐसे बच्चे कहीं बाल वेश्याव्रिति में झोकें गये हैं या खतरनाक उध्योगों या सड़क के किनारे किसी ढ़ाबे में जुठे  बर्तन धो रहे होते हैं या धार्मिक स्थलों व चौराहों पर भीख माँगते नज़र आते हैं अथवा साहेब लोगों के घरों में दासता का जीवन जी रहे होते हैं।
 सरकार ने सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा बच्चों को घरेलू बाल मजदूर के रूप में काम पर लगाने के विरुध एक निषेधाग्या भी जारी कर रखी है पर दुर्भाग्य से सरकारी अधिकारी, कर्मचारी, बुधिजीवी समाज़ के लोग ही इन कानूनों का मखौल उड़ा रहे हैं ।
देश में करीब 12 लाख बच्चें घरों या अन्य व्यवसायिक केंद्रों में बतौर नौकर काम कर रहे हैं।  
गौरतलब है कि अधिकतर स्व्यंसेवी संस्थायें या पुलिस खतरनाक उद्योगों में कार्य कर रहे बच्चों को मुक्त तो करा लेती हैं , पर उसके बाद उनकी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेती हैं। नतीजन, ऐसे बच्चे किसी रोज़गार या उचित पुनर्वास के अभाव में पुन: उसी दलदल में या अपराधियों की शरण में जाने को मजबूर होते हैं। यही नही, आज देश के लगभग 53.22 फ़िसदी बच्चें शोषण के शिकार हैं। इनमें से अधिकांश बच्चें अपने रिश्तेदारों या  मित्रों के यौन शोषण का शिकार हैं। अपने अधिकारों के प्रति अनभिग्यत व अग्यानता
के कारण ये बच्चे शोषण का शिकार होकर जाने-अनजाने कई अपराधों में लिप्त होकर अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

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